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सरकारी रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ या उसे बदलना अब हुआ चुटकियाें का खेल, पैसे देकर आसानी से बदलवाओ पन्ने !

PUBLISH DATE: 19-09-2024

सब-रजिस्ट्रार दफ्तराें में पैसाें के दम पर हाे सकता है हर गैर-कानूनी काम !
खुद सब-रजिस्ट्रार ने मानी रिकार्ड बदलने की बात, बदनामी के डर से सर्टिफाईड कापी देने पर लगाई राेक


 


सरकारी रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ करना, जाली दस्तावेज़ का किसी सरकारी काम में इस्तेमाल करना, दफ्तरी रिकार्ड से काेई दस्तावेज़ निकालना या उसे बदलना बड़े अपराेधाें की श्रेणी में आता है। जालंधर के सब-रजिस्ट्रार दफ्तराें में ऐसे कामाें काे बड़ा अपराध नहीं माना जाता। बल्कि यहां पैसों के दम पर काेई भी ऐसा काम चुटकियाें में करवा सकता है। इसका जीता-जागता उदाहरण उस समय देखने काे मिला जब कुछ महीने पहले सब-रजिस्ट्रार जालंधर-1 में एक रजिस्ट्री करवाई जाती है। जिसकी बाद में एक महिला द्वारा शिकायत दर्ज करवाई जाती है। इस शिकायत के दौरान कई ऐसे चौंकाने वाले मामले सामने आते हैं, जिसके बारे में सुनकर ही कोई भी हैरान रह जाए।


जैसा कि सभी जानते हैं कि सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में कई तरह के दस्तावेज़ रजिस्टर किए जाते हैं। जिसके लिए बाकायदा तौर पर सरकारी फीस ली जाती है और हर दस्तावेज काे पहले स्कैन करके कंप्यूटर में सेव किया जाता है, और उसके बाद जब दस्तावेज़ रजिस्टर हाे जाता है, ताे उसकी आफिस कापी काे सरकारी रिकार्ड रूम में बहुत संभालकर रखा जाता है। क्याेंकि यह अपने आप में ही एक बहुत महत्वपूर्ण रिकार्ड हाेता है, जिसकी ज़रूरत कई अदालती कामाें में भी पड़ती है। और उस समय इसी सरकारी रिकार्ड काे तलब किया जाता है।


तहसील के सूत्राें से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ महीने पहले एक ऐसी रजिस्ट्री हुई, जिसके बाद पैसाें की ताकत, ऊंचे रसूख व सैटिंग की पूरी गेम खेली गई। इस पूरे गाेरखधंधे में सब-रजिस्ट्रार दफ्तर का स्टाफ व अधिकारी शामिल हाेने की बात भी सामने आ रही है। हालांकि उनकी तरफ से साफ तौर पर उक्त इल्ज़ाम रजिस्ट्री करवाने वाले एवं लिखने वाले वसीका नवीस के ऊपर फैंककर अपनी जान बचाने की काेशिश की गई है।


 



 


तहसील के सूत्राें से प्राप्त जानकारी के अनुसार दरअसल जब रजिस्टरी काे लेकर शिकायत आती है और कुछ समय बाद पटवारी के पास इसका इंतकाल दर्ज करवाने के लिए जाता है ताे पता लगता है कि जितने रकबे की रजिस्ट्री की गई है, उतना रकबा ताे बेचने वाले के नाम पर सरकारी रैवेन्यु रिकार्ड में है ही नहीं। पटवारी द्वारा पैसे लेकर करीब आधे रकबे के इंतकाल दर्ज कर दिया जाता है और अपना निजी मोटा शुल्क वसूलकर पार्टी काे एक रास्ता भी बताया जाता है, जिसमें रजिस्ट्री के पहले पन्ने पर कुछ बदलाव करके बाकी के रकबे का इंतकाल करने की बात की जाती है।


तहसील के सूत्राें से प्राप्त जानकारी के अनुसार तब शुरू हाेता है सरकारी रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ का पूरा खेल। क्याेंकि आजतक रजिस्ट्री हाेने के कई-कई महीने तक आफिस कापी वाला रिकार्ड डीसी दफ्तर कांपलैक्स में बने रिकार्ड रूम के अंदर नहीं भेजा जाता। उसे सब-रजिस्ट्रार दफ्तर के साथ ही बने एक कमरे मे रखा जाता है। जहां कानूनन तो केवल सरकारी अधिकारियाें व कर्मचारियाें का प्रवेश करने की ही इजाजत है। मगर असलीयत में सुबह से लेकर शाम तक न केवल निजी करिंदाें की फौज बल्कि वसीका नवीस, नंबरदार, अश्टामफराेश व तहसील में एजैंटी करने वाले लाेग सरेआम यहां घूमते व सरकारी रिकार्ड के साथ छेड़खानी करते हुए देखे जा सकते हैं। यह सब कुछ कर्मचारियाें की शह पर ही हाेता है। इसलिए रजिस्ट्री के पहले पन्ने काे बदलवाना काेई बड़ी बात नहीं है। इसी का फायदा उठाकर पैसाें की ताकत से रजिस्ट्री का पहला पन्ना बदलकर बाकी के रकबे काे भी पूरा कर दिया जाता है।


इस मामले में सबसे मज़ेदार बात जाे सामने आती है कि अपनी एक रिपाेर्ट में सब-रजिस्ट्रार लिखते हैं, कि रजिस्ट्री करने से पहले ही संबंधित पार्टी ने दस्तावेज वापिस लेकर पन्ना बदल दिया था। मगर कंप्यूटर में स्कैन किए गए पहले वाले पन्ने का ज़िक्र आने पर उसे सरकारी आफिस रिकार्ड में दर्ज करने की लिखित इजाजत भी मांगी जाती है। मगर कुछ ही दिन के बाद अपनी एक अन्य रिपाेर्ट में पन्ना बदलने का सारा ठीकरा संबंधित पार्टी के बयानाें के आधार पर वसीका नवीस के ऊपर फाेड़ दिया जाता है। जिसमें यह भी कहा जाता है कि वसीका नवीस ने इस काम के लिए 5 हज़ार की फीस लेकर कुछ दिन बाद दस्तावेज़ सरकारी सही तरीके से बदलवाया है।


इतना ही नहीं दफ्तर की बदनामी न हो और आम जनता तक सच्चाई का पता न लग सके, इसलिए जब शिकायतकर्ता द्वारा सरकारी फीस अदा करके सेवा केन्द्र से सर्टिफाईड कापी के लिए अप्लाई किया जाता है, तो सब-रजिस्ट्रार के आदेशानुसार उन्हें यह कहकर कापी देने से इंकार कर दिया जाता है कि उक्त रिकार्ड मौजूद ही नहीं है। अब सोचने वाली बात है कि अगर सरकारी रिकार्ड ही दफ्तर से गायब हो चुका है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ? अगर रिकार्ड है और वह गलत है तो किसको बचाने के लिए कापी देने से मना किया जा रहा है ?


बड़ी हैरानी वाली बात है कि एक सरकारी दफ्तर के अंदर मौजूद सरकारी आफिस रिकार्ड काे इस बेहद आसानी से बदल दिया जाता है। जिससे किसी भी गैर-कानूनी व गल्त काम के होने की गुंजाईश को झुठलाया नहीं जा सकता।


सूत्राें का यह भी कहना है कि जिस वसीका नवीस की बात संबंधित पार्टी ने अपने बयानों मे की है, उसके द्वारा ताे रजिस्ट्री लिखी ही नहीं गई है। उक्त दस्तावेज एक एडवाेकेट ने ड्राफट किया था। इसके साथ ही एडवाेकेट के रजिस्टर में भी पहले वाले पन्ने पर लिखी गई जानकारी ही दर्ज की गई है। इस बात की भी चर्चा है कि उक्त रजिस्टर की फाेटाेकापी तत्कालीन सब-रजिस्ट्रार द्वारा अपनी पड़ताल के दौरान ली गई थी। 


मगर बाद में उन्हाेंने अपनी पहली रिपाेर्ट काे ही खारिज करते हुए पूरा कसूर वसीका नवीस के ऊपर डाल दिया, जबकि पन्ने ताे उनके दफ्तर से ही किसी कर्मचारी की सहमित से बदले गए थे। 


 



 


क्या कहना है सब-रजिस्ट्रार-1 का इस पूरे मामले काे लेकर ?


सब-रजिस्ट्रार-1 गुरप्रीत सिंह से जब इस बारे में बात की गई ताे उन्हाेंने कहा कि फिल्हाल उनके पास इस मामले की काेई जानकारी नहीं है। क्याेंकि यह मामला उनके चार्ज संभालने से पहले वाले अधिकारी के कार्यकाल के साथ संबिधत है। मगर सरकारी आफिस रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ की बात अगर सामने आती है, ताे उस सूरत में वह इसे गंभीरता से लेते हुए यह सुनिश्चित करेंगे, कि काेई भी बाहरी व्यक्ति इस आफिस रिकार्ड के आस-पास भी न जा सके।


रिकार्ड की छेड़छाड़ काे लेकर क्या कहता है कानून, क्या है प्रावधान ?


सीनियर एडवोकेट राजीव कोहली ने बताया कि अगर काेई भी व्यक्ति सरकारी रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ करता है, उसमें काेई बदलाव करता है, अपने फायदे के लिए उसका इस्तेमाल करता है। ताे उस सूरत में ऐसा करने वाला और उसकी सहायता करने वाला दोनाें ही कानून की नज़र में दाेषी हैं। आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत ऐसा करने वालाें काे 10 साल तक की सज़ा हाे सकती है।


उन्हाेंने कहा कि इस मामले में अगर अधिकारियाें के ध्यान में आया था, ताे उस सूरत में दाेषियाें के खिलाफ पुलिस प्रशासन के पास पर्चा दर्ज करने के लिए लिखा जाना अनिवार्य था। अगर अधिकारी ऐसा नहीं करते हैं ताे शिकायतकर्ता सीधा अदालत का दरवाज़ा भी खटखटा सकते हैं। 


 


इस संबधी एसडीएम-1 जै इंदर एवं तत्कालीन सब-रजिसट्रार जालंधर-1 मनिंदर सिद्दू से बात करने की काेशिश की गई, मगर उन्हाेंने फोन नहीं उठाया, जिससे उनका पक्ष प्राप्त नहीं हाे सका। जैस ही उनसे बात हाेगी, उनका पक्ष भी प्रमुखता से प्रकाशित किया जाएगा।