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शहर के एक आला अधिकारी का हुआ तबादला, अपने साथ ले गए 1.50 लाख का सोफा, पूरे शहर में चर्चाओं का दौर !

PUBLISH DATE: 24-03-2025

दफ्तर के एक कर्मचारी ने उठाए सवाल, कहा कागज़ो में है एंट्री मगर ज़मीनी हकीकत है कुछ अलग !



 


प्रदेश के कुछ सरकारी अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें शायद लगता है कि जो भी सरकारी पैसे से खरीदा जाता है, उसके ऊपर उनका निजी हक तो बनता ही है। आम जनता के खून-पसीने की कमाई से भरे जाने वाले टैक्स के पैसों से जिस सामान की खरीदोफरोख्त की जाती है, संबंधित अधिकारी उसके कस्टोडियन कहे जाते हैं और उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उसे एक अमानत की भांती मानें।


मगर जालंधर के एक आला अधिकारी शायद इसे सही नहीं मानते और आम जनता के पैसों से खरीदे गए सामान पर अपना निजी हक समझते हैं। हाल ही में इस बात का खुलासा हुआ जब एक सरकारी कर्मचारी ने कई साल की लड़ाई के बाद आरटीआई एक्ट के अधीन बेहद महत्वपूर्ण जानकारी मांगी और उसी दौरान यह बात सामने आई कि पूर्व आला अधिकारी के समय पर खरीदा गया 1.50 लाख की कीमत वाला एक सोफा कागज़ों में तो मौजूद है और जहां उसे होना चाहिए वहां वह है ही नहीं।


 



 


सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आरटीआई डालने वाले सरकारी कर्मचारी ने जब अपने साथी कर्मचारियों को कहा कि वह कम से कम 1.50 लाख की कीमत वाला सोफा कहां पड़ा है, उसे दिखा तो दों। जिसके बाद दफ्तर के ही कुछ कर्मचारी दबी ज़ुबान में उक्त कर्मचारी को कहा कि असल में उक्त सोफा तो पुराने साहिब अपने तबादले के बाद अपने साथ ही ले गए। यह सुनकर सरकारी कर्मचारी के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई और वह हक्का-बक्का रह गया।


 



 


 


यहां बताने लायक है कि यह कोई पहला मामला नहीं है, जब ऐसा कुछ हुआ है। दरअसल पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए, मगर उन्हें मौके पर ही दबा दिया गया। क्योंकि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने आला अधिकारियों के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं रखता और न ही कोई उनके द्वारा किए गए गलत काम सार्वजनिक करने की हिमाकत ही कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा करने से उन्हें इसका बड़ा खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। वैसे कारण चाहे की भी हो, मगर इस तरह से सरकारी संपत्ती को अपने निजी इस्तेमाल के लिए उसकी बनती जगह से कहीं दूसरी जगह ले जाना सरासर गलत व गैर-कानूनी है। इस मामले मे शायद ही कोई कारवाई हो, क्योंकि इसकी शिकायत करने की हिम्मत किसी भी कर्मचारी में है नहीं, मगर पिछले कुछ दिनों से यह मामला पूरे शहर में (खास तौर पर सरकारी दफ्तरों में) काफी चर्चा का विषय बना हुआ है।