जिला उपभोक्ता आयोग ने इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट को दिया 1 करोड़ 9 लाख रुपये का झटका, इन केसों में सुनाए फैसले
केस नंबर 1: सूर्या एन्क्लेव एक्सटेंशन में इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट ने पुरुषोत्तम लाल को 2 अप्रैल 2012 को प्लॉट नंबर 219 सी अलाट किया था। अलाटी द्वारा ट्रस्ट को 17,07,900 रुपए का भुगतान किया गया, लेकिन वर्षों तक प्लॉट का कब्जा न मिलने पर पुरुषोत्तम ने 5 जुलाई 2022 को उपभोक्ता आयोग में केस दायर किया। आयोग ने दिसंबर 2024 में फैसला सुनाते हुए ट्रस्ट को कुल 35.50 लाख रुपए लौटाने का आदेश दिया, जिसमें ब्याज, मुआवजा और कानूनी खर्च शामिल हैं।
केस नंबर 2: रमन कुमार को 4 सितम्बर 2006 को एल.आई.जी. फ्लैट नंबर 28 अलाट किया गया था। अलाटी ने 4,21,365 रुपए का भुगतान किया, लेकिन फ्लैट का कब्जा न मिलने पर रमन ने 25 फरवरी 2021 को आयोग में केस दायर किया। 19 दिसम्बर 2024 को आए फैसले में ट्रस्ट को प्रिंसिपल अमाउंट, ब्याज, कानूनी खर्च और मुआवजा देकर कुल 15 लाख रुपए लौटाने का आदेश दिया गया।
केस नंबर 3: पवन कुमार ने 4 सितम्बर 2006 को फ्लैट नंबर 202 का अलाट किया था और ट्रस्ट को 4,00,759 रुपए का भुगतान किया था। फ्लैट के कब्जा न मिलने पर पवन ने 25 फरवरी 2021 को उपभोक्ता आयोग में शिकायत की। आयोग ने 12 दिसम्बर 2024 को ट्रस्ट को प्रिंसिपल अमाउंट, ब्याज, कानूनी खर्च और मुआवजा मिलाकर लगभग 15.50 लाख रुपए लौटाने का निर्देश दिया।
केस नंबर 4: सुधीर कुमार अरोड़ा को 4 नवंबर 2008 को एल.आई.जी. फ्लैट नंबर 289 अलाट किया गया था। अलाटी ने 3,91,000 रुपए का भुगतान किया, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव और कब्जा न मिलने पर 4 नवंबर 2008 को शिकायत दर्ज कराई। आयोग ने 19 दिसंबर 2024 को पूरी राशि को ब्याज, मुआवजा और कानूनी खर्च के साथ 14.50 लाख रुपए वापस करने का आदेश दिया।
केस नंबर 5: सुषमा लूथरा को 4 सितम्बर 2006 को फ्लैट नंबर एल.आई.जी. 23 अलाट किया गया था। उन्होंने 4,50,439 रुपए का भुगतान किया, लेकिन ट्रस्ट ने कब्जा नहीं दिया। शिकायत पर आयोग ने 18 सितंबर 2020 को केस दायर करने के बाद फैसला सुनाया, जिसमें ट्रस्ट को प्रिंसिपल अमाउंट, मुआवजा, ब्याज और कानूनी खर्च मिलाकर करीब 15 लाख रुपए देने का आदेश दिया।
केस नंबर 6: राकेश कुमार को 4 सितम्बर 2006 को एल.आई.जी. फ्लैट नंबर 83 अलाट किया गया था और 4,11,120 रुपए का भुगतान किया गया। कई सालों तक कब्जा नहीं मिलने पर राकेश ने 17 नवंबर 2020 को आयोग में केस दायर किया। आयोग ने दिसंबर 2024 में फैसला सुनाते हुए 14.50 लाख रुपए वापस करने का आदेश दिया, जिसमें प्रिंसिपल अमाउंट, ब्याज और कानूनी खर्च शामिल हैं।
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