जाली वसीयत बनाकर NRI की कोठी हड़पने के आरोंपों के चलते कांग्रेसी नेता अश्विन भल्ला सहित कुल 7 लोगों पर पर्चा हुआ दर्ज !
एनआरआई भाईयों ने सोची-समझी साजिश साजिश के तहत जालसाजी करने के लगाए गंभीर आरोप !
पंजाब में बड़ी गिनती के अंदर लोग विदेश में सैटल हैं। जिसमें से बहुत से लोगों की प्रापर्टी अभी भी यहीं पर है। जिसकी देखभाल उन्होंने अपने रिश्तेदारों या जानकारों को सौप रखी है। आए दिन किसी न किसी जगह से ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिसमें एनआरआई की संपत्ती को गलत ढंग से हथियाने आदि की शिकायतें मिलती रहती हैं। प्रदेश सरकार ने भी लगातार विदेशों में पंजाब की गिर रही साख को देखते हुए इस तरह के मामलों को बेहद गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया है, जिसमें कैनेडा में रहने वाले एनआरआई भाईयों की माडल टाऊन स्थित करोड़ों रूपए की कोठी को गैर-कानूनी ढंग से एक जाली वसीयत बनाकर अपनी ही बहन एवं एक कांग्रेसी नेता अश्विन भल्ला सहित कुल 7 लोगों को इस साजिश में शामिल होने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसी मामले में एनआरआई थाना में भारतीय न्याय संहिता की धारा 319(2), 318(4), 336(2), 338, 336(3), 340(2) और 61(2) (आईपीसी की धारा 419, 420, 465, 467, 468, 471 एवं 120-बी) के अंतर्गत एक पर्चा भी दर्ज किया गया है। जिसमें कुल 7 लोगों को आपसी मिलीभगत के साथ धोखाधड़ी व जालसाजी करने का आरोपी बनाया गया है।
क्या है मामला, कैसे आया था सामने, क्यों दर्ज किया गया पर्चा ?
प्राप्त जानकारी के अनुसार कैनेडा रहने वाले एनआरआई जसविंदर सिंह आहलुवालिया एवं परमजीत सिंह आहलुवालिया पुत्र गुरचरण सिंह आहलुवालिया ने सीएम भगवंत मान के पास एक शिकायत दी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, कि उनके पिता की मौत के बाद वह जसविंदर सिंह, परमजीत सिंह, जसपाल कौर, कंवलजीत कौर एवं अजीत कौर वारिस थे। उनके पिता ने अपने निधन से पहले ही 22-02-1983 को उनके नाम पर वसीयत कर दी थी। उनकी जालंधर में 486-1 एल कोठी है, जिसकी देखभाल मौखिक रूप से उन्होंने अपनी बहन जसपाल कौर को दी थी। जिनका अब निधन हो चुका है। 2013 में जसपाल कौर ने कोठी की देखभाल करना बंद कर दिया। इसी दौरान निरवैर सिंह व उनकी पत्नी सिमरनजीत कौर ने उक्त कोठी किराये पर ले ली। जिसके बाद निरवैर सिंह व सिमरनजीत कौर ने एक सोची-समझी साजिश के तहत जसपाल कौर से किरायेनामे पर हस्ताक्षर करवाने के बहाने पावर आफ अटार्नी पर हस्ताक्षर करवा लिए। जिसके पश्चात उनके पिता की एक जाली वसीयत मिति 15-03-1984 जसपाल कौर के हक में बनाकर मिति 28-02-2013 को सब-रजिस्ट्रार-1 से रजिस्टर करवा ली। इस पूरे मामले मे खास बात यह रही कि इसमें उनके साथ-साथ अन्य वारिसों की जगह अन्य लोगों को खड़ा करके जाली वसीयत बनवाई गई। जबकि जिस दौरान उनके बयान सब-रजिस्टरार के सामन दर्ज हुए तब वह भारत में थे ही नहीं।
हमने पैसे देकर खरीदी थी कोठी, हमारे साथ जसपाल कौर ने किया धोखा – अश्विन भल्ला
कांग्रेसी नेता अश्विन भल्ला से जब इस बारे में बात की गई, तो उन्होंने कहा कि धोखाधड़ी व जालसाजी के सारे आरोप सरासर झूठे व बेबुनियाद हैं। हमने तो पैसे देकर जसपाल कौर से कोठी खरीदी थी। पैसों के बदले उसे मिट्ठापुर में 10 मरले का एक प्लाट दिया गया था।
इसके साथ ही 2014 में जसविंदर सिंह व परमजीत सिंह ने उनके खिलाफ माननीय अदालत में एक केस दायर किया था, जिसका फैसला उनके हक में हो चुका है। मौजूदा समय में भी अदालत के अंदर इसके साथ संबधित एक केस विचाराधीन है।
एफआईआर को लेकर अश्विन भल्ला ने कहा कि उनके बयान लिए बिना ही पर्चा दर्ज कर दिया गया। वह पुलिस प्रशासन के साथ पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं और उन्हें न्यायतंत्र पर भी पूर्ण विश्वास है।
शहर के एक मश्हूर हड्डियों के डाक्टर ने खरीदी थी कोठी, अदालत में चल रहे केस में थे पार्टी, मगर पर्चे से नाम गायब ?
शहर के हड्डियों के एक मश्हूर ड़ाक्टर ने उक्त कोठी जिसको लेकर विवाद चल रहा है, वह अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी थी। 2014 में जब अदालत के अंदर गल्त ढंग से कोठी हथियाने व जालसाजी करने को लेकर केस दायर किया गया था, तब डाक्टर की पत्नी को भी पार्टी बनाया गया था। मगर उनको छोड़कर बाकी सभी पक्षों के खिलाफ पर्चा दर्ज किया गया है। हालांकि पर्चे में एक अज्ञात आरोपी का भी ज़िक्र है, मगर वह अश्विन भल्ला एवं निरवैल के साथ पूरी डील में शामिल तीसरा व्यक्ति है या फिर कोई और, इसको लेकर स्थिति साफ नहीं की गई है। हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि डाक्टर की पहुंच बहुत ऊपर तक है, जिसके चलते उन्होंने पहले ही अपनी पत्नी का नाम जांच से हटवा लिया है।
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