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जालंधर में लर्निंग लाईसैंस, फिरोज़पुर-फाज़िल्का से पक्का लाईसैंस : भ्रष्टाचार का नया ‘हाईवे’ !

PUBLISH DATE: 13-09-2025

25 से 30 हज़ार प्रति लाईसैंस काली कमाई करके जालंधर के शातिर एजैटों ने कमाए करोड़ों


विदेश में बैठे लोगों के बनवा दिए लाईसैंस, विजीलैंस जांच में सामने आ सकता है अब तक का सबसे बड़ा ड्राईविंग लाईसैंस स्कैम !


(स्कैंडल पर्दाफाश)


 


 


 


जालंधर : पंजाब परिवहन विभाग की छवि लंबे समय से सवालों के घेरे में रही है। भ्रष्टाचार और दलालों की मिलीभगत के किस्से आम हैं। मगर अब जो खुलासे सामने आए हैं, वे विभाग के अंदर व्याप्त इस गहरे गंदे तंत्र की पोल खोलने के लिए काफी हैं। मामला है लर्निंग लाईसैंस और पक्के लाईसैंस का जहां एक ओर आवेदक जालंधर में लर्निंग लाईसैंस बनवाता है, वहीं पक्का लाईसैंस फिरोज़पुर और फाज़िल्का से जारी किया जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों और कैसे यह खेल सालों से चलता रहा ?


नियमों में बदलाव बना भ्रष्टाचार का ज़रिया


आरटीओ दफ्तर के सूत्रों के अनुसार परिवहन विभाग ने कुछ साल पहले एक नई व्यवस्था लागू की थी। इसके तहत आवेदक अपने निवास स्थान से लर्निंग लाईसैंस बनवाने के बाद राज्य के किसी भी ज़िले से पक्का लाईसैंस बनवा सकता है। विभाग का मकसद था, अप्वायंटमेंट में लचीलापन देना ताकि आवेदक मनचाही तारीख़ न मिलने पर किसी अन्य ज़िले से भी प्रक्रिया पूरी कर सके। लेकिन, विभाग के इस ‘सुविधाजनक’ नियम ने लालची एजैंटों और दलालों के लिए सोने की खान खोल दी। उन्होंने इस प्रावधान का दुरुपयोग करते हुए जालंधर से लर्निंग लाईसैंस बनवाने वाले हज़ारों लोगों के पक्के लाईसैंस फिरोज़पुर और फाज़िल्का से जारी करवाए।


एजैंटों ने की करोड़ों रूपए की काली कमाई


इस खेल में शामिल एजैंट हर लाईसैंस पर 25 से 30 हज़ार रुपए (सरकारी फीस से अलग) तक वसूलते थे। विदेशों में रहने वाले आवेदकों से तो 50-60 हज़ार तक की रकम वसूलने के भी मामले सामने आए। हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों को गाड़ी चलानी तक नहीं आती थी, उनके भी लाईसैंस जारी कर दिए जाते थे।


कई मामलों में तो आवेदक भारत में मौजूद भी नहीं होते थे। यह सब संभव हुआ परिवहन विभाग के अंदर बैठे कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों और बाहर काम करने वाले दलालों की गहरी सांठगांठ से।


 


 



 


स्मार्ट चिप कंपनी का है मुख्य  कनैक्शन


इस खेल में एक और बड़ा नाम जुड़ता है निजी कंपनी स्मार्ट चिप का। यह कंपनी लंबे समय तक बतौर बूट आपरेटर काम करती रही और अब ब्लैकलिस्ट हो चुकी है। सूत्रों का दावा है कि स्मार्ट चिप के पूर्व कर्मचारी, जो विभाग की आंतरिक तकनीकी खामियों से भली-भांति वाकिफ़ थे, उन्होंने एजैंटों के साथ मिलकर इस बड़े घोटाले को अंजाम दिया। इन लोगों ने सिस्टम में मौजूद खामियों और छेदों का फायदा उठाते हुए कुछ ही सालों में करोड़ों रुपए की काली कमाई कर ली।


क्यों जालंधर ही सबसे बड़ा केंद्र ?


पूरे प्रदेश में अगर लाईसैंस स्कैंडल का ज़िक्र होता है, तो सबसे पहले जालंधर का नाम सामने आता है। वजह साफ़ है यहां के एजैंट वर्षों से सक्रिय हैं और कई बार विजीलैंस की जांच में उनके नाम सामने भी आ चुके हैं। बावजूद इसके, न तो कोई कड़ी कार्रवाई हुई और न ही नेटवर्क टूट सका। विशेषज्ञ मानते हैं कि जालंधर, पंजाब का व्यापारिक और प्रवासी केंद्र होने के कारण यहां से लाईसैंस की सबसे अधिक मांग रहती है। यही वजह है कि एजैंटों ने इस मांग को अवैध कमाई में बदलने का तरीका खोज लिया।


विजीलैंस जांच की उठ रही है मांग


परिवहन विभाग की यह अवैध गतिविधि अब एक बड़े स्कैंडल का रूप ले चुकी है। जानकारों का कहना है कि अगर इसकी उच्च-स्तरीय विजीलैंस जांच करवाई जाए, तो बड़े अधिकारियों से लेकर एजैंटों तक की सांठगांठ उजागर हो सकती है। साथ ही विदेशों में बैठे आवेदकों तक की लिस्ट सामने आ सकती है, जिनके नाम पर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लाईसैंस जारी किए गए।


जनता और देश की सुरक्षा के  लिए है बड़ा खतरा


यह पूरा खेल केवल भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि जनता के साथ-साथ देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है। ऐसे लोगों को भी लाईसैंस जारी कर दिए गए, जिन्हें गाड़ी चलाने की योग्यता तक नहीं है। इसका सीधा असर सड़क सुरक्षा पर पड़ा और सड़क हादसों में बढ़ोतरी की एक बड़ी वजह यही हो सकती है। इसके साथ ही गैर-सामाजित व आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों के लाईसैंस भी बिना किसी जांच के केवल पैसों के दम पर बनाए जा सकते हैं। 


क्या होगा इस पूरे स्कैंडल का नतीजा?


फिलहाल, यह मामला दबे स्वर में चर्चा का विषय है।


लेकिन अगर जांच एजेंसियां सक्रिय हों, तो यह घोटाला पंजाब में परिवहन विभाग के इतिहास का सबसे बड़ा लाईसैंस स्कैम साबित हो सकता है।


सवाल यही है क्या इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, या फिर यह खेल इसी तरह चलता रहेगा ?